जीवन में विभिन्नताओं का समावेश है, क्योंकि हर क्षण परिवर्तित होती प्रकृति जीवन को विविध रंगों से भर देती है और इस नित नूतन परिवर्तन से जीवन में उल्लास, आह्लाद अपने लुभावने स्वरूप में विद्यमान है। यदि जीवन में रस न हों, तो जीवन कठिन हो जाता है।
यदि जीवन में भय, घृणा, असम्मान, अव्यवस्था हो, तो जीवन के संतुलन क्रम में विघ्न उत्पन्न हो जाता है आप अपने जीवन के अव्यवस्थित क्रम को व्यवस्थित कर सकते हैं। साधना सम्पन्न करने पर साधक का जीवन संतुलित क्रम में आता ही है। इसे करने से साधक स्वयं पर नियंत्रण स्थापित कर हर प्रकार की परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालने का सहज उपाय ढूढ़ लेता है। उसके अन्दर लक्ष्य को प्राप्त करने का अडिग विश्वास उत्पन्न हो जाता है, जिस कारण वह किसी भी कार्य को अत्यन्त सहजता से करने में समर्थ हो जाता है।
भद्रकाली अपने साधक पर कृपा कर, उसे जीवन में सफल बनाने में पूरा सहयोग प्रदान करती है। भद्रकाली की यह साधना इस युग में शीघ्रता के साथ साधक को अनुकूल फल देने वाली है। जो साधक के जीवन की बाधाओं एवं समस्याओं को समाप्त कर, उसे व्यवस्थित जीवन संचालन का मार्ग प्रशस्त करती है। बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान इस साधना के द्वारा संभव है। काली के किसी भी स्वरूप की साधना अपने आप में अद्वितीय एवं दुर्लभ साधना है, सभी साधक इसे सम्पन्न करने के लिये सतत् प्रयासरत रहते हैं।
यदि साधक सन्यासी है, तो वह अपने आभ्यान्तरिक उत्थान, साधनात्मक श्रेष्ठता को प्राप्त कर पाता है, यदि वह गृहस्थ साधक है, तो इसे सम्पन्न कर वह अपने भौतिक जीवन की समस्त आपदाओं को समाप्त कर, पूर्ण समृद्धिमय, ऐश्वर्यमय, शत्रु रहित हो बाधाओं का निवारण कर, कष्ट, पीड़ा, दुःख, तनावों से मुक्त हो पाता है। यह साधना जितनी संन्यासियों के लिए महत्वपूर्ण है, उतनी ही महत्वपूर्ण गृहस्थ साधकों के लिये भी है।
मार्कण्डेय पुराण में काली की उत्पत्ति भगवती जगदम्बा के ललाट पर मानी गई है। यद्यपि काली के असंख्य रूप है फिर भी साधकों द्वारा प्रमुख रूप से काली के तीन स्वरूप भद्रकाली, श्मशान काली तथा महाकाली की साधना की जाती है। वेदों में भी काली की स्तुति भद्रकाली के नाम से की गई है।
इसका कालिका पुराण में योग निद्रा महामाया स्वरूप में ध्यान किया गया है। यह दुर्गति नाशक स्वरूपा मानी गई हैं। दुर्गा के मंत्र और विधान से इनकी उपासना होती है। यही महिषासुर मर्दिनी हैं। इसी को चण्डी काली भी कहते हैं।
काली को महाकाल की शक्ति के रूप में भी स्तुति करते हैं, काल के स्वरूप की साधना सम्पन्न करने से साधक में शक्ति का संचार होता है। काली अपने दोनों हाथों में अभय और वर मुद्रा धारण की हुई है अर्थात् वे अपने शुद्ध सात्विक साधक को निर्भयता और वर प्रदान कर उसकी अभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं। काली से वर प्राप्त कर साधक में दृढ़ता, निर्भयता तथा साहस और संकल्प शक्ति का उद्भव होता है। गृहस्थ साधको के लिये सौम्य प्रक्रिया विख्यात है, जिसे अपनाकर वे आसानी से मनोवांछित कार्य सम्पन्न कर सकते हैं।
पग-पग पर हमें बाधाओं, कष्टों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है, आकस्मिक संकट और राज्य भय से हरदम भयभीत रहना पड़ता है। चिंता व तनाव से जीवन घुल जाता है, रोग से जीवन जर्जर हो जाता है, घर में कलह और अशांति की वजह से असमय बुढ़ापा और विविध समस्याओं में वृद्धि होती रहती है। अनेकों प्रयास करता है, लेकिन दिन-प्रतिदिन तनाव में फंसता ही जाता है। ऐसे समय में अन्य किसी देवता या कोई उपासना इतनी फलप्रद सिद्ध नहीं होती जितनी कि भद्रकाली की उपासना से इन विषम परिस्थितियों से मुक्ति आसानी से प्राप्त हो जाती है। काली साधना अपने-आप में फलप्रद और सुखदायक होती है। जीवन को निरापद बनाने के लिये एकमात्र भद्रकाली ही ऐसी शक्ति है जो अपने आप जीवन को पूर्ण सुरक्षित ओर उन्नतिशील बनाती है।
भद्रकाली जीवन को समृद्धिमय, ऐश्वर्यमय बनाने वाली, शत्रु संहारिणी, बाधा, अभाव, कष्ट, पीड़ा, तनाव चिन्ता और समस्याओं को दूर करने वाली, जीवन को निरापद और आनन्दयुक्त बनाने वाली एकमात्र ऐसी देवी हैं। जिसकी साधना, उपासना, सेवा और पूजा करना जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य और ध्येय है। भगवती के इस करूणामय स्वरूप की रामकृष्ण परमहंस स्तुति करते थे। काली अपने भक्तों पर अत्यन्त करूणा और कृपा करती हुई विराजमान रहती है, अतः काली के इस स्वरूप की साधना सम्पन्न कर साधक सभी आपदाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।
भद्रकाली साधना सम्पन्न करने का प्रभाव तत्क्षण दिखाई देता है। कभी-कभी तो साधना काल में ही कार्य पूर्ण होता दिखाई देता है।
नवरात्रि में किसी भी दिवस से प्रारम्भ करें। श्रेष्ठ दिवस पर सफेद वस्त्र धारण कर सफेद आसन पर भद्रकाली नवार्ण यंत्र व अनिष्ट निवारक काली गुटिका को स्थापित कर सद्गुरूदेव और भद्रकाली का संक्षिप्त पूजन सम्पन्न कर खीर का भोग लगायें तथा स्वयं वह भोग ग्रहण करें।
योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी। भुजैः
षोड़शभिर्युक्ता भद्रकालीति विश्रुता श्रीरो दस्योत्तरे
तीरे विभ्रती विपुलां तनुम अतसीपुष्पवर्णाभा
ज्वलत्काच्चन-कुण्डला जटाजूटमखण्डेन्दु
मुकुटत्रय भूषिता नागहारेण सहिता स्वर्णहार
विभूषिता शूलं खड्गं च शंख च चक्र वाणं तथैव च
शक्तिं वज्रच्च दण्डं च नित्यं दक्षिण बाहुभिः विभ्रतीं
सततं देवी च घण्टां च परशुच्चैव मुशलं
वाणपाणिभिः सिंहस्था नयनैः रक्तवर्णै स्त्रिभिर
भिज्ज्वला शूलेन महिषं भित्वा तिष्ठन्ती परमेश्वरी।
वामपादेन चाक्रम्य तत्र देवी जगन्मयी।।
यंत्र पर नौ कुंकुंम की बिन्दियां लगाते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ जयायै नमः। ऊँ विजयायै नमः। ऊँ अजितायै
नमः। ऊँ अपराजितायै नमः। ऊँ नित्यायै
नमः। ऊँ विलासिन्यै नमः। ऊँ दोग्ध्रयै नमः।
ऊँ अघोरायै नमः। ऊँ मंगलायै नमः।
भद्रकाली मंत्र का नित्य 5 माला मंत्र
जप दुर्गति नाशक माला से करें।
पंचदिवसीय साधना के बाद साधना सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें। जब भी किसी विशेष कार्य के लिये जाना हो तो निम्न मंत्र का 21 बार जप कर उस कार्य के लिये जाये।
इस अखिल ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के मूल में आदि शक्ति ही क्रियाशील हैं। किसी भी वस्तु का सृजन और विनाश शक्ति द्वारा ही होता है। मनुष्य के जीवन में शक्ति के अभाव से ही जीवन में अनेक न्यूनतायें, क्लेश, दुख, पीड़ा, विषाद, दुर्गति और निराशा ही निराशा व्याप्त होने लगती है। शक्ति का तात्पर्य ही सद्बुद्धि, बोध, पुष्टि, तुष्टि, शांति, क्षान्ति, श्रद्धा, कान्ति, सद्वृत्ति, धृति, उत्तम स्फ़ूर्ति, लज्जा, दया, परोपकार, श्रेष्ठ सुस्थितियों का निर्माण, भौतिक-आध्यात्मिक जीवन के साथ ही अन्य सद्गुणो का विकास होना है। शक्ति अपने विभिन्न स्वरूप में चराचर जगत में विचरण करती है, जिनके बिना शिव भी शव के समान हैं, वहीं शिव के बिना शक्ति भी अपूर्ण हैं, यानि शिव और शक्ति के सामंजस्य से ही पूर्णत्व का भाव आता है और इन सब के मूल में गुरू समाहित है।
गुप्त नवरात्रि की पूर्णता, गुरू पूर्णिमा का पावनतम् अवसर और श्रावण मास के प्रारम्भ के विशिष्ट योग में शिव और शक्ति के सामंजस्य से श्रेष्ठ जीवन निर्माण करने हेतु पूज्य सद्गुरूदेव गुरू पूर्णिमा के पावन दिवस 31 जुलाई को टैलीपैथी के माध्यम से प्रातः 5:35 से 7:19 के मध्य षोड़श बाहु भद्रकाली शक्तिपात दीक्षा प्रदान करेगें। जिससे शिव-शक्ति के पूर्णत्व का भाव आ सकेगा। और साधक प्रत्येक सुकर्म क्रिया में विजय श्री प्राप्ति कर सकेगा। दोनों हाथों में भद्रकाली साधना सामग्री लेकर गुरू का ध्यान करते हुये 27 मिनट तक उक्त भद्रकाली मंत्र का जप कर दुर्गा और गुरू आरती सम्पन्न करें। निश्चित रूप से इस साधना स्वरूप दीक्षा के माध्यम से शिव तत्व पूर्ण सद्गुरू और शक्ति स्वरूपा भद्रकाली जीवन की दुर्गति को पूर्णरूपेण नाश करने में आप सक्षमता प्राप्त कर सकेंगे।
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