वैदिक काल से ही पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपालन हुआ, जिसके सम्बन्ध में गीता में अत्यन्त सुंदर ढंग के साथ व्याख्या की गई है जिस प्रकार मानव की आत्मा भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से जैसे शैशवावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था से गुजरती है उसी प्रकार यह एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती हैं (कठोपनिषद्), गीता के दूसरे अध्याय में यह लिखा है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र के जीर्ण हो जाने पर नवीन वस्त्र को धारण करता है उसी प्रकार आत्मा जर्जर वृद्ध शरीर को छोड़ कर नवीन शरीर धारण करती है। वेदोंकेंतकोआगेउपनिषदोउपनिषदोउपनिषदोउपनिषदोउपनिषदोमीममीममीममीम
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भारतीय दर्शन में कर्म सिद्धांत में विश्वास व्यक्त किया है, इस सिद्धांत के अनुसार हमारा वर्तमान जीवन अतीत जीवन के कर्मो का फल है, तथा भविष्य जीवन वर्तमान जीवन के कर्मो का फल है, यदि हम अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं तो हमारे लिए वर्तमान जीवनमेंनिरन्तरप्रयत्नशीलरहनाआवश्यकहै। अतःप्冰箱
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व्यक्ति का व्यक्तित्व इतना चुम्बकीय हो, कि सामने वाला व्यक्ति उसकी ओर आकर्षित हो तथा उसकी प्रत्येक बात मानने के लिए तत्पर हो जाये— वैसे भी आजकल ज्यादा ध्यान व्यक्ति की पर्सनलिटी पर ही दिया जाता है— पब्लिक लाइफ में तो इसका महत्व कई गुना बढ जाता है- - सथतितितिअपनेअपनेअपनेकीकीकीओंओंओंकोकोसकोकोशशशशशशशशशशशशशशशतोतोतोतोतोतोजीवनजीवनजीवनदीनजीवनजीवनजीवनदीनदीनजीवनजीवनजीवनजीवनदीनदीन सेअधू冰箱
अन्यथाफिरतुमअकेलेहीहो—-अद्वितीय, अनुपम। यदिकेकेथ इससेपहलेवहपशुपशु,जोजोजोबंधनोंबंधनोंबंधनोंएवंियोंियोंियोंमेंमेंहुआहुआहुआ
इसलिये ऋषियों ने एक ऐसे दिवस का चयन किया, जो अपने आप में तेजस्विता युक्त है, और ऋषित्व चेतना प्राप्ति साधना का निर्माण किया जो इस दिवस पर की जाती है, जिसके द्वारा व्यक्ति सहज ही उपरोक्त आयामो को अपने जीवन में समावेश करता हुआ हर प्रकार सेसफलताकाअधिकारीहोताहै।
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