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वतवहीलयलयलयउततमतमतमकेकेकेिकिकथथथथ यही पर मुझे 'परशुराम कल्प' जैसा आश्चर्यजनक ग्रन्थ देखने का अवसर मिला, मैं पिछले चालीस वर्षों से इस ग्रन्थ को देखने या प्राप्त करने की आशा संजोये हुये था, कई दूसरे ग्रन्थों में 'परशुराम कल्प' के बारे में अत्यन्त श्रद्धा के साथ बताया गया हैकिकिमीसेसेसेसेसेसेसेसेसंबंधितकईकईलभलभ
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श्री थापा जी की सहृदयता से और उनके विशेष भाव के फलस्वरूप मुझे इस ग्रन्थालय में परशुराम कल्प ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति देखने का अवसर मिला, जो कि भोज पत्रों पर प्रमाणिकता के साथ अंकित अपने आप में दुर्लभ और अद्वितीय प्रति है। जिसमेंजिसमेंकईकईोंवेशवेशतोतोतोहीतोहीतोइसमेंइसमेंइसमेंषय
कहते,कि,किइसममकईकईऋषियोंनेनेनेननननननसससममममम भगवतपाद शंकराचार्य ने स्वयं एक स्थान पर स्वीकार किया है, कि परशुराम कल्प अपने आप में अद्वितीय ग्रन्थ है, और इसकी अक्षय पात्र साधना तो सम्पूर्ण जीवन की जगमगाहट है जो भौतिकता में पूर्णता चाहते है, जो आश्चर्यजनक रूप से लक्ष्मी की कृपा चाहते हैं, जो अपने जीवन में धन-धान्य ऐश्वर्य और अथाह सम्पत्ति चाहते है, उनके लिये एक मात्र परशुराम कल्प ही सर्वोच्च साधना है जो अपने जीवन में करोड़पति बनना चाहते है, जो भौतिकता की दृष्टि से पूर्णता और पराकाष्ठा चाहते है, जो अपने व्यापार को सम्पूर्ण भारतवर्ष में औहतेहतेहतेहते
इस ग्रन्थ में आगे बताया गया है कि जो अपने जीवन में पूर्ण स्वस्थ, निरोग, सौन्दर्ययुक्त और पराक्रमी बनना चाहते है, जो अपने जीवन में अथाह स्वर्ण भण्डार और धन सम्पत्ति की इच्छा रखते है, जो पूर्ण भोग और ऐश्वर्य में जीवन व्यतीत करना चाहते है , उन्हें परशुराम कल्प का ही सहारा लेना चाहिये क्योंकि परशुराम कल्प में ही अक्षय पात्र साधना दी हुई है और इस अक्षय पात्र साधना के द्वारा ही जीवन की पूर्णता, भौतिकता, संपन्नता, श्रेष्ठता, शतायु जीवन युक्त सर्वकामना पूर्ति में सर्वोच्चता प्राप्त की जा सकती है ।
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22 अप्रैल की रात्रि को (जिस दिन परशुराम जयन्ती युक्त अक्षय तृतीया महापर्व है) साधक पीली धोती पहिन कर कंधों पर पीली धोती डाल कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाये और सामने पानी का लोटा भरकर के रख दें और फिर लोटे पर तिगंधंचंंंधोतीसेसेसे फिइसलललमेंमेंमेंखख,यहखख
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अक्षय पात्र का जल से तथा दूध, दही, घी, शहद, शक्कर को परस्पर मिला कर पंचामृत बना कर उससे अक्षय पात्र को बाहर से धोना चाहिये, इसके बाद पुनः स्वच्छ जल से धोकर पौछ कर अपने स्थान पर रखना चाहिये और उस पर त्रिगंधा बिन्दी ,इसीनीषयषयषयकीकीकीकीबिंदीनीनीनीनीहियेजोजोूषूषूषकीआकृतिआकृतिआकृतिईईईईई,उस
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साधक साधना स्थल से उठ कर भोजन आदि कर ले, इसी प्रकार दूसरे दिन भी मंत्र जप करे, पर दूसरे दिन परशुराम आकृति का निर्माण या अक्षय पात्र स्थापित आदि करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो पहले दिन अक्षय पात्र स्थापन आदि कर दिया हैं, वह उसस्थानपरज्योंकात्योंरहेगा। इसमेंतीनदीपकदीपकदीपकचइसे
तीसरे दिन अर्थात् दिनांक 24 अप्रैल की रात्रि को भी इसी प्रकार 21 माला मंत्र जप करने के बाद भगवान परशुराम को भक्ति भाव से प्रणाम करें और किसी पीले वस्त्र में रूपये, सोने के टुकड़े और चावलों से भरे हुये अक्षय पात्र के साथ साथ अक्षय फल रख कउसेमेंंठंठलेंंधइसइसलभ
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पमकेधकयदिवयंवयंवयंकोकोयोगयोग
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