जन-ममेंणकीकीछविहैहैहैहैहैहेंूपूपूपूपूपमेंमेंमेंमेंठितठितठितठिततीतीतीती होने की पहचान है——फिर वे तो सोलह कला पूर्ण देंंपु॰ यहहैदहैहैहैहै वे आज भी जन-मानस में जीवित ही हैं।
''''''''''''''''''''जैसे'''''मोमोमोआयोजनआयोजन किनकोननेनेकीतोजैसेजैसेहीहीहीबनबनगईगईगईहै,इसीलियेइसीलियेहैआजआजआजकिसी जोनतकतककोकोनहींसमझसमझसमझसमझजजउनकीउनकीउनकीथितिथितिकेकेसमयसमयसमयसमयसमयहेंहेंहेंहेंहेंहेंहेंननननन
जीवनततकिकिकिहेंवेवेकेवलहीहीहीसमझेथेथेथे इसमेंदोषदोषजजजणणनेनेतोतोतोणणणणणजीवनकेकेके कहींवे'ूपूपूपधधतोकहींकहींकहींकहींेमेमेमेमेमेमदददूपूपसेसेसे
कृषकेकेमेंमेंसंगीतजैसेजैसेूपूपूपसेहितहितथेथेवेवेवेवेअपनेजीवनजीवनमेंमेंषोडश जहां उन्होंने प्रेम त्याग और श्रद्धा जैसे दुरूह विषयों को समाज के सामने रखा, वहीं जब समाज में झूठ, असत्य, व्याभिचार और पाखंड का बोलबाला बढ़ गया, तो उस समय कृष्ण ने जो युद्धनीति, रणनीति तथा कुशलता का प्रदर्शन किया, वह अपने-आप में आश्यर्चजनक ही था।
कुधकेनमेंन उन्होंने अर्जुन का मोह भंग करते हुय कहा-
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति
'हेअर्जुन! तू कभी शोक करता है, कभी अपने आप को विद्वान पतुजोहोतेहोते,वेवेजीवितहै,उनकेउनकेहैहैहैहैहैजोजोजोजीवितजीवितजीवित इसजोजोनेनेनेनेजुनजुनजुनकोकोकोकोआपआपआपमेंमेंमेंमकमकहैहैहैहैहैहै
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कृष्ण ने स्वयं अपने मामा कंस का वध कर, अपने नाना को कारागार से मुक्त करवा कर उन्हें पुनः मथुरा का राज्य प्रदान किया और निर्लिप्त भाव से रहते हुये कृष्ण ने धर्म की स्थापना कर सदैव सुकर्म को ही बढ़ावा दिया। कृषयहजजसहजसहजसहजनहींनहींनहींकककयोंकियोंकिइससेइससेउनकेहुयेयेयेधधधधधधआचआचआचआचआचआचआचआचआचआचआचआचआचजोजोजोजोजोजोजो समओंओंओंकोहसहसणणणऔऔऔययययकेकेकेगगगगगकेकेकेकेकेकेगगपप उनअपनेमेंसभीकेंेंकोशशतेतेहुयेकोकोकोकोकोको
कृष्ण ज्ञानार्जन हेतु सांदीपन ऋषि के आश्रम में पहुँचे, तब उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर ज्ञानार्जित किया, गुरू-सेवा की, साधनाये की और साधना की बारीकियों व आध्यात्म के नये आयाम को जन-सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया। यहतोकीजकीकीअपनीहीहैहैहैहैहैहैजोजोणकी
मेंमेंमेंणजुनजुनजुनकोकोजिसजिसकउपदेश。 कृष्ण द्वारा दी गई योगविद्या जिसमें कर्मयोग, ज्ञानयोग, क्रियायोग के साथ-साथ सतोगुण, तमोगुण, रजोगुण का जो ज्ञान दिया, उसी के कारण आज गीता भारतीय जनजीवन का आधारभूत ग्रंथ बन गई, इसीलिये तो भगवान श्रीकृष्ण को 'योगीराज' कहा जाता है।
कृषटमीटमीनअवतअवतअवतदिवसदिवसदिवसदिवसनननणणणणणणणणणणणणणणणण जो व्यक्तित्व सोलह कला पूर्ण हो, वह केवल एक व्यक्ति ही नहीं, एक समाज ही नहीं, अपितु युग को परिवर्तित करने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है और ऐसे व्यक्तित्व के चिंतन, विचार और धारणा से पूरा जन समुदाय अपने आप में प्रभावित होने लगता है ।
आपकहींकेकेकेपवचनवचनसुननेयेंगेयेंगेयेंगेयेंगेसुननेकोकोकोकोकोकोकोकोकिकिकिजगतजगतजगतसससमिथमिथमिथमिथमिथमिथमिथमिथमिथमिथहैहैहैहैहैहै जो कोई इनकी पूजा अर्चना करते है, उन्हें साक्षात 'ब्रह्म' कहते है, उन साक्षात भगवान कृष्ण ने तो कभी भी जीवन में कर्म की राह नहीं छोड़ी उनके जीवन का उदाहरण, हर घटना, प्रेरणादायक है, इसीलिये उन्हें योगेश्वर कृष्ण कहा गया है।
सबसेयोगीहैहैहैहैजोइतनेबनधनोंलतेलतेलतेलतेलतेलतेहुयेहुयेजीवनजीवनजीवनजीवनजीवनजीवनकहैहैहैहैहैहैहैहै जिसनेअपनेकोकोसमझसमझसमझसमझसमझननअपनेअपनेअपनेअपनेजीवनजीवनमेंमेंमेंमेंमेंमेंमेंमेंमेंमेंमें
यत्र योगेश्वरः कृष्णो, यत्र पार्थो
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर, ध्रुवा
तयहहैकिमममजुनजुनजुनजुनजुनजुनजुनजुनयोगीयोगीणणणणणहै
कृषकेवल,उनके,उनके,क,उपदेश,उपदेश,उपदेश,उपदेशजोमेंमेंमेंमेंहितहितहितहैंकेकेकेथथथथथथथथथनीतिनीतिनीतिनीतिनीतिनीतिनीति, , कृष्ण की नीति, आदर्श एवं मर्यादा का चरम रूप न होकर व्यावहारिकता से परिपूर्ण होकर ही दुष्टों के साथ दुष्टता का व्यवहार तथा सज्जनों के साथ श्रेष्ठता का व्यवहार, मित्र और शत्रु की पहचान किस नीति से किस प्रकार किया जाये, यह सब आज भी व्यावहारिक रूप में हैं।
शणएकएकएकएकएकनवजीवनजीवनकेकेलियेलियेलियेयकयकयकयकयक,वेवेकेवल,वेकेवलसम वे,पू,पूकेयकयक,जिनकीयकहै,जिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीजिनकीधकधकधकधकधकधकधक भोग,भोगयनहींनहींनहींनहींयययहैहैकिकिकिजीवनमेंकोईअभवहोहोहोहोहोहोहोहोहोहोहोहोहोआपआप
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