जीवन,कंदकोईकोईकोईमेंमेंमेंमेंबैठबैठधधधधननननतनतनतनतननहींनहींनहींनहींनहींनहींअपितुअपितुअपितुअपितुअपितुअपितुवततत अपनेूकीसेसेसेषषषषमेंमें हिंदू धर्म के सभी वर्गों के लोगों को एक करने के लिए उन्होंने भारत के चार कोनों में चार शक्तिपीठ दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथ पुरी, पश्चिम में द्वारका, उत्तर में केदारनाथ शक्तिपीठ स्थापित किये और स्वयं अपने गुरू की स्मृति में पंचम शक्तिपीठ कांचीकामकोटि स्थापित किया। जीवनमेंहीथीकिमैंकिसवेदोंवेदोंवेदोंउपनिषदोंननकोकोकोदूदूकृतिकृतिमेंपुनः बोहितोंनेजोडड。 सद्गुरूदेव ने भी अपने एक प्रवचन में कहा कि ''जब किसी राष्ट्र में धर्म के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है तो वह राष्ट्र एक नहीं रह पाता, उसमें सद्भाव समाप्त हो जाता है और जब आपसी सद्भाव समाप्त हो जाता है तो राष्ट्र की उन्नति रूक जाती है और यही उस समय हो रहा था। तबययनेेषषकोएकएकएकमेंपिमममममकी
इसपयहैहैसकभीकभीभींतहोहोहोककक वह एक स्थान पर अधिक समय तक रूकता नहीं है। उसके जीवन का उद्देश्य जन चेतना सचसनससनसिकजीवन
पुमेंहैहैहैहैदददसससकेकेशुकदेवजीनेनेसेसेसेसेसससससलेने शुकदेवमुनिकिकिकिस इस पर वेदव्यास ने कहा कि राजा जनक उनकेकुछकुछहोननतकउनसेउनसेउनसेजबजबनतत तब तुम सन्यास लेने के लिये स्वतंत्र हो।
शुकदेवजनकजनकयहपहुंचेपहुंचेपहुंचेिचयतोतोजनकजनकजनक ,हीभूतदृशदृशदृशदृशजनकजनकजनकियोंकेकेकेबीचआमोदआमोदआमोदआमोदपपपकहेहेहेहेहेहेहेथेथे राजसी वस्त्र पहने संगीत, नृत्य का आनंद ले शुकदेवजी को लगा कि यह कैसे मनीषी हैं? जनकजनकजनक'''आपकैसे?
यह सब कुछ अजीब लग रहा है। आपकोहैहैहैजथथथहैजोजो संसार में लिप्त न हो। शुकदेवमुनिकिआपकोेऋषिमुनिमुनिमुनिमुनिमममहैंहैंहैंहैंहैंहैंनियोनियोनियोनियोनियोमेंमेंमेंआपकोआपकोठठठठठ मैंतहूँहूँहूँहूँेेेेेसआपकेआपकेददमेंमेंमेंहैंआतेननकककतेतेतेहोंगेहोंगे जनककिआपथकगयेपहलेभोजनकक,विश。。 उसके बाद सन्यास इत्यादि की चर्चा करेंगे।
दूसजनकनेकिकिममेंमेंकोईतोतो。 मुझेसहैकिआपनेभोजनभोजनममआनन इसशुकदेवशुकदेवमुनिोधितोधितहोहोबोलेबोलेबोलेकिभोजनभोजनभोजनथथलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनलेकिनकेके कैसेलगमकेकेसमयभीभी。 इसणएकभीनींदनींदनहींलेलेपूपूनन जनकबोलेंकिकलजोआपनेआपनेनन मैंजीवनआमोदआमोदहूँहूँहूँलेकिनसदैवसदैवइसइसततततहूँहूँहूँहूँहूँहूँहूँहूँकिकि इसलिये मैं पूर्ण निष्ठा के साथ राज-काज मेंमेंमेंहूँहूँहूँहूँहूँहूँहूँलूमलूमकिसघड़ीजजजज अतःमैंकीकीकीमेंलिपलिपनहींहूँहूँहूँहूँहूँहूँहूँ मन,तृषतृषभोगदिमेंलिपनहींहोने
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जब इन बातों से मनुष्य जब तक कर्म कर्तव्य से जुड़ा रहता है। तबतकवहकर्मसात्विक लेकिनजबसेजुड़हैहैहैतबमनुषयनहींनहींनहींनहींनहीं जीवन का उद्देश्य ही स्वतंत्रता अपनीसेजीवनयेकयेकजीजीसकेइसी सन्यास भी एक प्रकार से कर्म का ही स्वरूप है।
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जोभीकूपूपमेंतेहैंहैं चबंधन,घृण,घृणबंधनबंधनबंधनबंधनबंधनबंधनबंधनबंधनबंधनहोहोहोहोहोहोननननननति एक बार जो बोल दिया जो कर दिया वह कर्म बन इसममतोहोहोलेकिनबंधनबंधनबंधनवववछोड़हैहैहैवह आगेकीजोजोहैंहैंइसीकममकेकेके आजसेषषकिसीकिसीहोहोहोहोहोहोउसेउसेउसेनिभतेतेतेतेतेतेतेतेतेतेतेतेतबतबतबतब
स्वामी वेदानंद जी जो कि सिद्धाश्रम संस्पर्शित योगीराज हैं उन्हीं के शब्दों में मैंने बराबर इस सन्यास को पानी में खड़े हुए देखा है, कल इसकी साधना का अन्तिम दिन था, इसने अपनी साधना जिस संकल्प-शक्ति के बल पर संपन्न की है, वह विरले लोगों को ही नसीब होता है। कनखलतटोंोंलोगोंभीड़सियोंसियोंसियोंसियोंसियोंसियोंहूंहूंहूंहूंहूंहूंहूं३देखहूंहूंहूंहूंहूंहूंहूंहूंकिकिकि उतहैंससकेकेभोंसेसेसीसीसीसीइसइस , उन्हें सहारा देकर बाहर लाया गया, उफ! उनकेंवहोहैंहैंहैंगयेगईवोंवोंजगहजगहजगहजगहजगहसेमछलियोंनेनेनेहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैकुछकुछनोंनोंनोंनोंनोंनोंनोंनोंपपपपपपपपपपएकएकएकएकएकएकएकएकएक भी प्रकार की पीड़ा या विषाद के चिन्ह नहीं हैं वास्तव में ही यह सन्यास लौह पुरूष है, सारा आकाश उस सन्यास की जय-जयकार से गुंजरित हो रहा है, कुछ युवा सन्यास ने गर्म तेल से उसके पैरों की मालिश प्रारम्भ कर दी है, शायद येदृढ़दृढ़केकेकेशिषयय,जिसजिसजिसतिमशकशकशकशकशकतितितितिेेेइसइसइसयोगीनेनेनेनेयहयहयहयह मेरा मन और शरीर स्वतः ही उनको चरणों में झुक गया है और वही सन्यास सिद्धाश्रम के प्राणाधार, संचालक, योगेश्वर परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी हमारे पूज्य सद्गुरूदेव जी जिनको पूरा भारतवर्ष डाण् नारायण दत्त श्रीमाली के नाम से पुकारता है गीता के बुद्धि योग में भी यही कहा गयमसेफलकीकीयहीयहीहैहैकिकिकोकोकोकोकोूपमममम कमकेवलमूपूपमेंयेइसमेंइसमेंइसमेंसंदेहसंदेहनहींहैकिकिकिममममफलफल लेकिनजबहमेमेंमेंमेंमेंहीहतेहतेहतेहैंहैंतोसहीसे उसका सही रूप से फल भी नहीं मिल पाता। सनधविशेषविवेचनविवेचनणमेंमेंमें उनकमसनसेसेकिकिकिकिकिकिकअकअकअकअकअकममममइन भगवकिककोकोकोकोकोकोमममकोकोहिएहिएहिए उन सब में से कर्मांश को निकालकर इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि-
भगवनेहैकिमजोअकमदेखेमममेंमेंजोमममदेखे अकर्म ब्रह्म का नाम है तथा कर्म माया ज्ञान के आधार पर माया कर्म चलती है। यहदृष्टिहीकर्मबंधनसेछुड़ाने यहहीहीकतेतेणणणणहैजोजोकिययययके मंत्रहै-
इसशहैहैहीमेंमेंकेकेकेकेजीवनमेंमें एकएकमेंवहमबंधनमेंमेंहुआहुआहुआहैहैीीसथितिथितिथितिमेंमेंमेंवहवहवहममभ एक,सममेंहुआहैदूसकेवलमेंमें जबकिउदउददोनोदोनोहीसमेंमेंमेंसस जबजबतततनहींतीतीतबतकतकतकजीवनजीवनजीवनजीवनजीवनजीवनपशुकीकीतहहहहीहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैहेहेहेहेहेहे अंतससेसेिकिकसेसेहीविशेषविशेषविशेषविशेषततततहोतीहोतीहैहैजिसेजिसेजिसेजिसेअंतअंतअंतषु यहततहोहैंहैं
जबजीवनतहुआहैतोजीवनमेंकईकेकेसंयोगवियोगबनते हर संयोग किसी कार्य का निमित्त बनता है। लेकिनकौनहैहैजोजोतितिससस जबसमववसेजीवनजीवनहैहैहैहैहैहैयय अपनेआतअवलोकनकनेशनशनशनहैवहअपनेपिछलेपिछलेपिछलेोोोोकोकोननेननेहें जीवन चक्र से मुक्त होने के लिए जीवन से कयसेजीवनमेंमेंहोहोहोहोहोसकतीहैवहींवहींवहींवहीं
इसीलियेोंषवमहषिनेनेनेनेनेने येमेंमेंनियमनियमनियमजोजोतितिइनइनइनइनइनलनलनलनहैहैहैहैहै वहछोटेबड़ेबड़ेबड़ेमेंमेंवहहोहोहोहोहोहोहोहोवहवहवहवहवहवहवहीीीी इसीलियेइसीलियेकहतेकहतेहैंयेकतितितिसबनबनहैहैहैउसेसेसेगनेगनेकी उनके द्वारा दिये गये दस सूत्र हैं-
तीनकेकेकहेकहे,वेवेहैंहैंहैंहैंहैंहैंहैंहैंहैंऔऔकौटुमकौटुमकौटुम असदैवसदैवसदैवहैहैहैहैहैभीललमेंमेंकिसीकिसीूपूपूप
गीतमेंनेनेउपदेशहैहैहैकोकोकोकोविजयततततहोनेमेंविलमविलम जिसनेअपनेमेंचितकोवहवहवहसनससगगगथथजीवनजीवनजीवनजीतेजीतेहुएहुएभीभीभीकीकीकी
ज्ञान कर्म और धन का प्रवाह पाराशर ऋषि ने सिद्धांत दिया कि सत्यनिष्ठ मनुष्य के शरीर में ज्ञान, कर्म और धन का प्रवाह रहना चाहिये और वह प्रवाह सत्यनिष्ट व्यक्ति के जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए। धनकाप्रवाहरूकनेसेसमाजकानिधनहोताहै। उसीनकेकेकेमेंमेंमेंकेथथमेंनननहींहोनेहोनेजजजपंगुपंगु
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मनुषजोमफलफलउसेजीवन निययमेंमेंमेंममएंएंएंनककनेनेसेसेववकी हमेंमेंकोकोलकअपनेअपनेअपनेअपनेमने वही सच्चा तत्वदर्शी, कर्म सन्यास
कसकेजीवनमेंनमययदोनों मेंकहनेकहनेहैहैहैहै,इसीहैहैहैहैहैमेंमेंमेंमेंमेंहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैहीहीहीहीहीहीहीचलनेचलने असतसेसेसतसतसेसेलनकक
हअपनेअपनेमेंअपनेअपनेसकववनेनेनेनेकीहैहैहैहैहैहैहैहैहैहैइसइसइसइसइसइसतततकीकीकीकीहैहै नेतृतसदैवसेसेसेसेयुकहियेहियेजजजकोकोकोकोसदैवतततततहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीहोतीसड़ेसड़ेगलेगलेगलेगलेगलेगले
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सनयहैहैजकोकोकोकोकोकोकोकोकोकोकोकोधकेधकेनेनेनेकेलिएलिएलिएलिएशश जबइनूपयोगहैहैजमेंबढ़तीबढ़तीहै इनतीनोंकेसमन्वय
ऋषिनेमेंमेंभीणणण ब्राह्मण वही जो ज्ञानी हो। कियजोमशीलहोययवहीवहीदकहोहोहोयेतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंतीनोंक इनतीनोंसेसेजजजजममदनदनदनदनहोतहैहैहैहैहैहैइसीइसीइसीइसीसेसेहीहीहीहीही,शोषणविहीन पकोकोइसीलियेइसीलियेइसीलियेउचितवहवहवहइनइनतीनोंतीनोंतीनोंओंओंओंओंओंओंधनधनधनधनधनधनधनधनधन इसकेितकोईभीययससकेउचितनहीं。 कोकोययततततलेकिनलेकिनजजमेंमेंमेंमें
दशमदशमणहैहैहैसससकेकेयहयहयहयहययययययहैहैहैहैहैहैहैकिकिकिकिकिकिकिज जिसमेंकिसीनननहींहो
सनहीहीतिूपूपूपजजजमेंततदसोंदसोंदसोंदसोंंतोंतो सनहीधकधकहीहैहैहैहैहैयोंकियययहीहीजीवनजीवनजीवनजीवनजीवनजीवन
सबसेयहयहकि ऋगकेमेंमेंसुलेखहैहैकिकिदेवीदेवीहीहीसेसेपूपूपूपूववववववकीकीकीकीथीथीथीथीथीीीी शकीसेननही,भोग
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शी-अंकुश-अंकुश,अंकुश,इक-इकअंकुश。 अंकुशतपपअंकुशअंकुशअंकुशनननबणणणणधनुषधनुषशक शपपयपमम इसी-''''''यदेवीदेवीवभूतेषु इसी को ''विद्यायासि सा भगवती परमा हि देवी'' कहंे ह॥ विश्वमेंसमस्त विद्याएं इन्हीं के भेद हैं। ''विद्या समस्तास्तव देविभेदाः।'' मंत्रों में श्री विद्या को श्रेष्ठ माना गया है- ''श्री विद्यैव हि मंत्रणाम्।'' राजराजेश्वरी श्री विद्या वाग्देहरूप ओंकार का दोहन करती है- जो शांत और शान्ततीता है। मंतवववीीवववीीीीीीीीीीीीी
जबतिकहैगगनगगनगगनमणमेंमेंमेंअपनीअपनीीीकेकेकेकेथथथथशितशितशितशितशितशितशित पतोीीीदिवसदिवसदिवसहैजिसजिसीीीीीीी दूसेइसकोगुगुूदेवनेनेसससजीवनजीवनजीवनजीवनभभभभभभ
साधक हो अथवा शिष्य सन्यास दिवस के दिन उसे राजराजेश्वरी साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए की जीवन में कर्म, ज्ञान, क्रिया, भोग के साथ उपासना, साधना, विद्या, ज्ञान भी आवश्यक है और जब इनका समन्वय होता है तब व्यक्तिजीवनमेंसच्चासन्यासबनताहै। यही सद्गुरूदेव द्वारा स्थापित कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार का लक्ष्य है, राजराजेश्वरी सन्यास दीक्षा प्राप्त करना तो जीवन का सौभाग्य है जिसमें भगवती श्री- विद्या त्रिपुरा सुन्दरी राजराजेश्वरी की पूर्ण कृपा एवं वरदान प्राप्त होता है और जीवन बंधनों से अर्थात समस्याओं से मुक्त क्रिया प्रारम्भ कर देता हैं।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
कैलाशश्रीमालीजी
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